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Sunday 19 January 2020

कत्लेआम

कभी मशहूर करता है , कभी बदनाम करता है ;
अज़ब फ़ितरत है इसकी , इश्क क्या - क्या काम करता है .

इशारा तेरी नज़रों का , मुक़द्दर लिखता है सबका ;
ये चाहे सुब्ह जिसकी , जिसकी चाहे शाम करता है ,

मुकदमा कोई तुझपे क्यों नहीं चलता अदालत में ;
तेरा तलवार - सा काजल , जो कत्ले आम करता है .

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