एक युवती अपने किशोर अवस्था के प्रेम प्रसंग का वर्णन करती हुई
आशकी में किशोरी से युवा हो गई,
बात साथ देने की जीने मरने की की,
संग संग चांद तारो पर रहने की की।
आंखो को उसने हसीन सपने दिए,
सपनो में ही पड़ कर समर्पित हुई।
वक्त कटता गया यू ही चलता गया,
प्रेम बढ़ता गया कभी घटता गया।
एक दिन वो कहीं लापता हो गया,
बहुत पूछा तो जाना शहर को गया।
आस में आने के रात जागती रही,
सड़क पर बसों को मैं तकती रही।
डाकघर कई चक्कर मैं जाती रही,
डाकिए को व्यथा मैं सुनाती रही।
बरस, दो बरस, दस बरस हो गए,
एक दिन डाकिया घर आही गए।
तार पाकर तो मैं प्रशन हो गई,
उसकी पुरानी यादों में फिर खो गई।
धड़कन बढ़ती गई तार पढ़ती गई,
पढ़ते पढ़ते प्रशान्ता कही खो गई।
तार में था लिखा उसकी शादी हुई,
मेरी जिंदगी तो मानो धुंआ सी हुई।
आशकी में किशोरी से युवा हो गई,
कमी चाहत में हमसे है क्या हो गई,प्रभात यादव
❤️
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