कैसे कैसे स्वाँग रचाए हम ने दुनिया-दारी में यूँ ही सारी उमर गँवा दी औरों ग़म-ख़्वारी में
हम भी कितने सादा-दिल थे सीधी सच्ची बात करें लोगों ने क्या क्या कह डाला लहजों की तह-दारी में
जब दुनिया पर बस न चले तो अंदर अंदर कुढ़ना क्या कुछ बेले के फूल खिलाएँ आँगन की फुलवारी में
आने वाले कल की ख़ातिर हर हर पल कुर्बान किया हाल को दफ़ना देते हैं हम जीने की तय्यारी में
अब की बार जो घर जाना तो सारे एल्बम ले आना वक़्त की दीमक लग जाती है यादों की अलमारी में
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