सत्तर के विकाश को सात के विनाश ने,
जमीदोष कर दिया खोखले विश्वाश ने।
अंधकार कर दिया प्रकाश की चास ने,
दीप को बुझा दिया स्वास के आभास ने।
अर्थ को डूबा दिया व्यवस्था झकास ने,
श्वेतधान खो दिया कालेधन की आश ने।
सत्तर के विकाश को सात के विनाश ने,
जमीदोष कर दिया खोखले विश्वाश ने।
पैर को छिला दिया पेट की तलाश ने,
कमी को दिखा दिया गंगा में लाश ने।
एक स्तंभ खो दिया देश में छपास ने,
ऐसा खेला खेल दिया चौकीदार खाश ने।
सत्तर के विकाश को सात के विनाश ने,
जमीदोष कर दिया खोखले विश्वाश ने।
Prabhat Yadav
Nice
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