Tuesday 28 September 2021

बेटियां

आज भी बेटियो को लेकर कुछ ऐसे हालात है, 
जो भी लिख रहा हूं वो मेरे दिल के जज़्बात है,

बेटियां-
दुनिया में आने से पहले शुरू होती है लड़ाई,
दुनिया में आने पर भी बटती नहीं है मिठाई,
जन्म लेते ही बेटो कि तरह लेती हूं अंगड़ाई,
पर फिर भी घर के सब ने क्यों है भौं चढाई,
भाई की तरह मां ने मुझको भी है दूध पिलाई,
फिर भी मुझेसे ज्यादा भाई पे है स्नेह लुटाई,
हम में वो अंतर क्या है मां दे दो ये बतलाई,
मै भी तो हूं उसी खून की उसी गर्भ से आई,
ज्ञान मेरा भी हक था पर कर ना सकी पढ़ाई,
कभी कढाई, कभी सिलाई इसमें थी अझुराई,
युवा हुई तो शादी करा के कर दी गई विदाई,
एक उमग से नई तरंग से नए डगर को आई,
सोचा अब सब अच्छा होगा छू लूंगी उचाई,
कुछ ना हुआ सोचा जैसा ज्यादा गई सताई,
यहा ना जा वह ना जा घुघट की घटा है छाई,
वहा तो कुछ राहत थी यहा हो गई और कड़ाई,
सोचा नया नया है सब कुछ हो जाएगी ढिलाई,
सालो बाद मिला फिर धोका होने लगी पिटाई,
पल भर की खुशी ही मिली जब हुई गोद भराई,
सोचा अब तो अच्छा होगा सोच सोच मुसकई,
पर ना पता था लड़ना होगा और कड़ी लड़ाई
फिर से जब कोख से मेरी बेटी जनम को आई,
ठान लिया मैने भी अब जब बेटी पे मेरे आई,
झेला मैंने अब तक जो सब जाये ना दोहराई,




जीवन भर मै सहती रही हूं,
खुद से ही मै लड़ती रही हूं,
उठती रही हूं गिरती रही हूं,
प्रेम से घर मै भरती रही हूं,








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