गुलों को ख़्वाब चमन के दिखा के छोड़ दिया,
सवेरे हाल-ए-हक़ीक़त बता के छोड़ दिया.
शिक़स्त मुझसे बढ़ा देती दुश्मनी उसकी,
उसे शिक़स्त के नज़दीक ला के छोड़ दिया.
अब अपने सच की गवाही कहाँ-कहाँ दूँ मैं,
बस उनके झूठ से पर्दा हटा के छोड़ दिया.
ज़माना उसके तरन्नुम में क़ैद है अब तक,
जो गीत मैंने कभी गुनगुना के छोड़ दिया.
मुझे नसीब भला आज़मा के क्या देखे,
उसे ही मैंने अभी आज़मा के छोड़ दिया.
वो सुर्ख़ हो गयी मेरी ज़रा-सी ज़ुर्रत से,
फिर उसने हाथ मेरा मुस्कुरा के छोड़ दिया.
© चिराग़ जैन
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