वो वफा पे वफा मुझसे करती गई, मैं खफा पे खफा उसपे होता गया।
वो सभी उलझनों को सुलझाती गई, मैं सुलझी को फिर उलझाता गया।
वो चाहत को फिर भी बढ़ती गई, मैं चाहत पर चाबुक चलता गया।
वो सबरदार थी सबर करती गई, मैं बेशर्म सितम उसपर ढाता गया।
आखिर सबर उसका टूटा सही, छोड़ मुझको किसी और के घर गई।
जाने पे उसके तड़प सा गया, बिना मतलब के सब पे भड़क सा गया।
उसकी तन्हाई में तन्हा हो सा गया, मैं अपने वाजुदो को खो सा गया।
वो वफा पे वफा मुझसे करती गई, मैं खफा पे खफा उसपे होता गया।
&---@Prabhat Yadav@_&❤️
Bahoot khub
ReplyDeleteधन्यवाद
ReplyDeleteKya khub likhte ho
ReplyDeletenice bhaiya
ReplyDeleteThanks
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