पिता हू पिता होने का फर्ज निभाता हू,
रोज भोर होते घर से निकल जाता हू।
खेतो में तो कही ऑफिसों में जाता हू,
जिमेदारी सारी बड़े दिल से निभाता हू।
फिर भी कही तो मैं काम पड जाता हू,
खाली हात घर को जाने से घबराता हू।
आजकल बच्चो सवालों से डर जाता हू,
पिता हू पिता होने का फर्ज निभाता हू।
@____प्रभात यादव____,❤️
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